विवेकानंद पर पिता का प्रभाव
विवेकानंद पर पिता का प्रभाव
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विवेकानंद पर पिता का प्रभाव
मित्रो ! इस वीडियो में मैं आपके सामने विवेकानंद के व्यक्तित्व निर्माण में उनके पिता की भूमिका पर प्रकाश डालने जा रहा हूँ । पिता विश्वनाथ दत्त अध्यात्म की ओर उन्मुख तो नहीं थे किंतु करुणा, उदारता, त्याग और अपना सर्वस्व लुटा देने की फक्कड़ाना मस्ती उनके संस्कारों में थी । वे कोलकाता हाईकोर्ट के अटॉर्नी एट ला थे । खूब जमकर कमाते थे और साथ ही खर्च भी कर दिया करते थे । उनके बारे में विख्यात था 12 महीने में 13 उत्सव । वे भोग और त्याग के अनुपम उदाहरण थे । कभी पैसा जमा करना तो सीखे ही नहीं थे । वकालत ऐसी चलती थी कि दूर-दूर से मुवक्किल घर में आए रहते थे । ऊँचे घरों के मुसलमान उनके मुवक्किल थे । जरूरत से ज्यादा नौकर - चाकर और घोड़े-गाड़ियाँ उनके दरवाजे पर खड़े रहते थे ठाट- बाट से रहना उनका स्वभाव था । सो, अपने पुत्र नरेंद्रनाथ को सर्वगुण संपन्न बनाने में उन्होंने कोई कोर कसर नहीं रखी ।
एक दिन उन्होंने बेटे नरेंद्र से पूछा --"बेटे ! तुम बड़े होकर क्या बनोगे ?" नरेंद्र ने छूटते ही उत्तर दिया --" मैं कोचवान बनूँगा और सारी दुनिया घूमूँगा । विश्वनाथ दत्त समझ गए कि बेटे को घुमक्कड़ी का बहुत शौक है ; तो उसके लिए एक घोड़ा-गाड़ी का प्रबंध कर दिया । पिता विश्वनाथ दत्त ने नरेंद्र की रुचियों को ही प्रोत्साहन नहीं दिया अपितु उसके हृदय को उदार, उच्चाशय और गौरवपूर्ण बनाने में बड़ी कुशलता का परिचय दिया । उन्होंने नरेंद्र को कभी डांटा-फटकारा नहीं । उसे कभी नीचा दिखा कर अपमानित नहीं किया । आम पिताओं की तरह उसे अपशब्द कहकर या तुच्छ संबोधनों से संबोधित करके उसके मन में हीनता-बोध नहीं आने दिया । अपितु उसके मान-सम्मान में वृद्धि की । इसलिए नरेंद्र को अपने पर भरपूर विश्वास था ।
पिता विश्वनाथ पुत्र पर संस्कार डालने की कला भी खूब जानते थे । मारा-पीटा तो उन्होंने कभी भी नहीं । एक दिन की बात है । नरेंद्र किसी बात पर अपनी माता से उलझ गया । वह जोश में आकर होश खो बैठा । उसने क्रोध में आकर अपनी माँ को गालियाँ दीं । बात पिता तक पहुँची। पिता ने बात सुनी और चुप हो गए । घरवालों ने देखा कि पिता विश्वनाथ ने नरेंद्र को बिल्कुल नहीं डांटा और न ही समझाया । अगली सुबह नरेंद्र उठा तो उसने अपने कमरे की दीवार पर लिखा पाया कि नरेंद्र ने अपनी माता को ये-ये गालियाँ दीं । अब नरेंद्र को काटो तो खून नहीं । उसका माथा शर्म से झुक गया । फिर उसे याद नहीं कि कभी उसने अपनी माता के साथ गाली गलौज किया हो; बल्कि उसने यह बात गाँठ बाँध ली कि कोई तुम्हें गाली दे तो भी उस समय चुप रहो । सहन करो ; और फिर जब कभी मौका मिले तो उसे उसके वचन याद कराओ । वह स्वयं लज्जित होकर तुम्हारे चरणों में आ गिरेगा । अमेरिका में अपने निंदकों के साथ कितनी बार उन्होंने इस युक्ति का उपयोग किया ।
पिता विश्वनाथ दरिया दिल थे । उनकी करुणा कृपा बनकर सर्वस्व लुटा देने को तत्पर रहा करती थी ।इसलिए मोहल्ले भर के लोग उन्हें "दाता विश्वनाथ" कहकर पुकारा करते थे । विश्वनाथ के मँझले पुत्र महेंद्र नाथ दत्त अपने पिता के बारे में लिखते हैं कि दीन दुखियों की सहायता करना उनके लिए एक बीमारी के समान हो गया था । किसी की भी कठिनाई उनसे देखी नहीं जाती थी । कितने ही दूर के संबंधी उनके घर में रहकर उन्हीं के खर्च पर पढ़ाई किया करते थे । विश्वनाथ अपने हर संबंधी की सहायता किया करते थे । यहाँ तक कि कुछ रिश्तेदार व्यसनी थे । यह जानते हुए भी पिता उनकी सहायता कर दिया करते थे ।
एक दिन नरेंद्र ने पिता से पूछ लिया --" आप ऐसे व्यसनी और नशेबाजों की सहायता क्यों किया करते हैं ?" पिता ने और भी मार्मिक उत्तर दिया । कहा --" बेटा ! यह तो तुम बड़े होकर ही समझ सकोगे । दुनिया में बड़े दुख हैं। कुछ लोग उन दुखों से छुटकारा पाने के लिए नशे की लत के शिकार हो जाते हैं । मुझे लगता है कि बड़े होकर तुम भी उनके दर्द को समझोगे और उन पर करुणा दिखाओगे ।" नरेंद्र अपने पिता का उत्तर सुनकर अभिभूत हो गया । परंतु घर की चिंता करने वाले कुछ तथाकथित अपने लोग भी थे । उन अपने लोगों को डर लगता था कि इस तरह खुले हाथों से दुनियादारी कैसे निभेगी ? बच्चों की शादियाँ कैसे होंगी ? ऐसे ही समझदार रिश्तेदारों के बहकावे में आकर नरेंद्र ने पिता से पूछ लिया --"पिताजी ! आज तक आपने हमारे लिए क्या किया है ?" पिता ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर कहा --" तुम एक बार दर्पण में जाकर अपना मुँह देखो । फिर मुझे बताओ कि मैंने तुम्हारे लिए क्या किया है ?" नरेंद्र निरुत्तर हो गया ।वह समझ गया कि सांसारिक धन की उपयोगिता क्या है ? उस दिन उसने सचमुच अपना रूप दर्पण में देखा ।
अपना भव्य रूप देखकर समझ आया कि धन का उद्देश्य संचय करना नहीं अपितु व्यक्तित्व का निर्माण करना है । इस प्रकार पिता विश्वनाथ दत्त ने विवेकानंद के व्यक्तित्व-निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
18th April 2020
विवेकानंद पर पिता का प्रभाव
प्रसंग डॉ. अशोक बत्रा की आवाज में
प्रसिद्ध कवि, लेखक, भाषाविद एवम् वक्ता
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