विवेकानंद : कालेज-जीवन की मस्ती
विवेकानंद : कालेज-जीवन की मस्ती
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विवेकानंद : कालेज-जीवन की मस्ती
मित्रो ! इस वीडियो में मैं आपके सामने विवेकानंद के कॉलेज जीवन के कुछ रोचक प्रसंग सुनाने जा रहा हूँ । नरेंद्र नाथ ने जब असेंबली कॉलेज कोलकाता में प्रवेश लिया तो वह बहुत बलिष्ठ और हृष्ट-पुष्ट युवक था । उसके आकर्षक व्यक्तित्व के कारण असंख्य युवक उसके मित्र और प्रशंसक बन गए । वह अपने मित्रों का चहेता बन गया । उससे दोस्ती करना हर विद्यार्थी अपना सौभाग्य समझता था । सजीला और मनमोहक युवक होते हुए भी नरेंद्र को ऐसे युवक फूटी आँख नहीं भाते थे जो आँखों से रसीले इशारे करके लड़कियों को देखा करते थे ।
नरेंद्र नटखट और दयालु भी बहुत था । एक दिलचस्प किस्सा याद आ रहा है। नरेन्द्र का एक साथी हरिदास चट्टोपाध्याय पैसे की तंगी की वजह से कॉलेज की फीस नहीं दे पा रहा था । बी.ए. की परीक्षा थी । परीक्षा का दिन आ गया, परंतु वह पैसे नहीं जुटा पाया । जैसे-तैसे उसने फीस के पैसे जुटाए तो कॉलेज बकाया फीस माँगने लगा । हरिदास रुआँसा हो गया ।
नरेंद्र को रात-भर नींद नहीं आई । वह हरिदास के बारे में सोचने लगा ।उसे लगा कि उसकी सहायता होनी चाहिए । उसे पता था कि कॉलेज में गरीब छात्रों की फीस माफ की जाती है । अतः वह काउंटर क्लर्क राजकुमार बाबू के पास गया । उससे बड़े ही विनम्र शब्दों में निवेदन किया कि यह छात्र बहुत गरीब है ।यदि इसकी फीस माफ न की गई तो यह परीक्षा नहीं दे पाएगा और उसका एक साल बेकार चला जाएगा । परंतु राजकुमार बहुत ही घमंडी और रूखा था । उसने नरेंद्र को दुत्कारा । कहा --"तू बड़ा इसका सिफारशी बनता है । जा, अपने काम से काम रख । मैं नहीं करता इसकी फीस माफ ।"
नरेंद्र निराश हो गया । परंतु तभी उसके दिमाग में एक योजना कौंधी । उसे पता चला कि राजकुमार बाबू अफीमची है और रोज शाम को चंडूखाने में अफीम का नशा करने जाता है । बस, फिर क्या था ? नरेंद्र रोज की तरह घर न जाकर शाम को चंडूखाने के दरवाजे के पास पहुँच गया और अपने शिकार की तलाश में कहीं छिप कर बैठ गया । साँझ हुई । कुछ झुटपुटा अँधेरा हुआ तो राजकुमार बाबू प्रकट हुए । जैसे ही वे चंडूखाने में जाने को हुए, नरेंद्र सामने प्रकट हो गया । नरेंद्र को देखते ही राजकुमार अचकचा गया । उससे उगले बने न निगले । वह हकला कर बोला --" अरे रे रे आओ दोस्त ! आज तुम कॉलेज में आए तो मैं गुस्से में था ; और तुम घबराओ नहीं । तुम कल कॉलेज में आ जाना । मैं उसकी फीस माफ कर दूँगा । और देखना, यह बात किसी के मुँह पर नहीं आनी चाहिए । नरेंद्र ने वादा किया और बिजली की गति के साथ हरिदास के पास हॉस्टल में पहुँचा । उसे बताया कि अब उसका काम हुआ समझो । उसको कॉलेज की बाकी फीस नहीं भरनी पड़ेगी । जब नरेंद्र ने अपनी चाल का खुलासा किया तो वे दोनों हँसते-हँसते लोटपोट हो गए ।
नरेंद्र विद्यार्थी के रूप में अद्भुत क्षमता वाला छात्र था । उसके सब अध्यापक उस पर मंत्रमुग्ध थे ।जनरल असेंबली कॉलेज के अध्यक्ष विलियम हेस्टी दर्शनशास्त्र और साहित्य के अच्छे ज्ञाता थे । एक दिन कॉलेज की दार्शनिक क्लब में नरेंद्र ने जिस प्रकार किसी दार्शनिक मत का सूक्ष्म विश्लेषण किया, उससे वे झूम उठे । वे बोले -"यह नरेंद्र दर्शनशास्त्र का सर्वश्रेष्ठ छात्र है । जर्मनी और इंग्लैंड के तमाम विश्वविद्यालयों में एक भी ऐसा छात्र नहीं है जो इसके समान मेधावी हो ।" नरेंद्र केवल पुस्तकीय विद्या तक ही सीमित नहीं था । वह हर बात को जीवन के अनुभव से सीखता था । इसलिए अध्यापन संबंधी धारणाओं के लिए उसने सिद्ध पुरुषों के संपर्क का लाभ उठाया । उसे भगवान के दर्शन करने थे तो एक-से-एक आध्यात्मिक महापुरुष का दरवाजा खटखटाया और स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास जा पहुँचा । वहाँ भी विचित्र विरोध ।
कहाँ राजाओं जैसा तेजस्वी नरेन्द्रनाथ और कहाँ रंक जैसा गुरु । फिर भी माथा टेक दिया तो टेक दिया । और निभाया कैसा -- अपना पूरा जीवन झौंक दिया गुरु के सपनों को पूरा करने के लिए । ऐसे नवयुवक विवेकानंद के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम ।
1st May 2020
विवेकानंद : कालेज-जीवन की मस्ती
जानिये स्वामी विवेकानंद जी के कालेज-जीवन की मस्ती !!!
प्रसंग डॉ. अशोक बत्रा की आवाज में
प्रसिद्ध कवि, लेखक, भाषाविद एवम् वक्ता
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