महाभारत से कोरोना संदेश
महाभारत से कोरोना संदेश
ॐ
महाभारत की खिड़की से कोरोना संदेश
मित्रो ! इस वीडियो में मैं यह जानने का प्रयास कर रहा हूँ कि कोरोना वायरस जैसी महामारी के बारे में महाभारत जैसा महान महाकाव्य हमें क्या संदेश देता है ? आप सब जानते हैं कि कोरोना वायरस साक्षात् मौत है | दौड़-दौड़ कर लोगों के गले पड़ती हुई मौत ! हर किसी को निगलने के लिए झपटती हुई मौत ! ऐसी अनिष्ट मौत महाभारत के युद्ध के दौरान भी अनेक बार आई , परंतु नीतिनिपुण कृष्ण ने उस मौत का सामना कैसे किया, अपनी प्रजा को कैसे बचाया -- इसके एक नहीं , अनेक प्रसंग महाभारत में उपलब्ध हैं | चलिए , चलते हैं युद्ध के मैदान में |
पहली घटना
आप जानते हैं कि कंस का वध करने के पश्चात कंस के ससुर जरासंध बहुत क्रुद्ध थे| उन्होंने मथुरा पर आक्रमण करने के लिए एक नहीं 17 बार चढ़ाई की , किंतु हर बार विफल हुए | अठाहरवीं बार मथुरा पर चढ़ाई करने से पहले उन्होंने कालयवन नाम के एक राजा को मथुरा पर चढ़ाई करने के लिए भेजा | कालयवन को भगवान शिव का वरदान प्राप्त था कि युद्ध के मैदान में उसे कोई परास्त नहीं कर सकता इसलिए कंस निश्चिन्त था | कालयवन जब अपनी विशाल सेना के साथ अट्टहास करता हुआ मथुरा के बाहर खड़ा हुआ और 1 दिन में ही लड़ाई लड़ने के लिए चुनौती दी तो नीतिनिपुण कृष्ण ने सबसे पहले उसे अकेला किया | कहा -- "सेना को भी बेकार क्यों मरवाते हो कालयवन ! आओ , कहो तो अकेले - अकेले लड़ लें ।" चुनौती पाकर कालयवन ने कहा --"ठीक है ,हम अकेले ही युद्ध करते हैं ।
फिर कृष्ण ने कहा-- " तुम्हारे पीछे तो इतनी विशाल सेना खड़ी है| और, मैं अकेला हूँ | मुझे डर लग रहा है | इसलिए किसी एकांत जगह पर चलो ! " यह कहकर कृष्ण उसे एकांत जगह पर ले गए | उसे बिलकुल अकेला कर दिया !और जब कालयवन ने चुनौती दी लड़ाई करने की, तो कृष्ण रण छोड़कर भाग खड़े हुए | भाग नहीं खड़े हुए ; उन्होंने उचित दूरी बनाते हुए कालयवन को इतनी दूर तक भगाया, दौड़ाया | तब तक दौड़ाए रखा जब तक कि वह गुफा न आ गई जिसमें कालयवन की मौत राजा मुचकुंद के रूप में सोई पड़ी थी | क्रोध में अंधे कालयवन ने बिना सोचे समझे गुफा में सोए राजा मुचकुंद को कृष्ण समझकर जोर से लात मारी | परिणाम यह हुआ कि मुचकुंद ने उसे शाप से भस्म कर डाला|
मित्रो ! भारत की सरकार भी हमें यही कह रही है कि जब तक कोराना को मौत की भेंट न चढ़ा दिया जाए, उससे उचित दूरी बनाकर एकांत में जियो और कोरोना वायरस को अपनी मौत मरने दो ।
दूसरी घटना
17 बार परास्त होने के बाद और फिर कालयवन की भी मृत्यु के बाद जरासंध ने फिर से मथुरा पर आक्रमण किया तो प्रजा की रक्षा के लिए कृष्ण ने विश्वकर्मा से कहकर चारों ओर से समुद्र से घिरी एक सुरक्षित द्वारिका नगरी बनवाई और स्वयं बलराम भैया के साथ रण छोड़कर भाग खड़े हुए | जरासंध ने उन्हें भागते हुए देखा तो अट्टहास किया | कहा -- देखो, यह ग्वाला रण छोड़कर कैसे भागा जा रहा है ! किंतु ये दोनों नीतिनिपुण थे | वे भागते भागते मथुरा के पर्वत पर स्थित एक ऐसे वन में प्रवेश कर गए जिसमें 24 घंटे बारिश होती रहती थी और वह जंगल इतना सघन था कि उसमें से किसी छिपे हुए व्यक्ति को खोजना असंभव था | निराश जरासंध ने उस पूरे पर्वत पर आग लगवा दी | ऐसी विपरीत स्थिति में भी कृष्ण डरे नहीं | रात के समय सबसे आँख चुराकर सेना का घेरा तोड़कर पर्वत से नीचे कूद गए और समुद्र से घिरी अपनी सुरक्षित नगरी द्वारिका में जा पहुँचे |
मित्रो ! यह घटना भी हमें समझाती है कि जब लाचारी सामने खड़ी हो , साक्षात मृत्यु सामने खड़ी हो तो भी डरो नहीं | आत्मरक्षा के लिए शत्रु से दूर एकांत में बने रहने का प्रयास करो |
तीसरी घटना
क्रोध में अंधे अश्वत्थामा ने युद्ध में लड़ रही पांडव सेना का सर्वनाश करने के लिए वह सर्वसंहारक नारायण अस्त्र चला दिया जिसके चलने पर यह तय था कि जिस भी पांडव सेना के हाथ में लड़ने के लिए हथियार होगा और जो लड़ने की सोच रहा होगा , वह अपनी मौत मारा जाएगा | जैसे ही कृष्ण ने स्थिति को समझा, उसने अपनी पूरी सेना को तुरंत आदेश दिया कि अपने -अपने हथियार तुरंत डाल दो और प्रणाम की मुद्रा में खड़े हो जाओ । मन में युद्ध का विचार ही न आने दो ।
मित्रो ! परिणाम यह हुआ कि वह सर्वनाशी नारायण अस्त्र फुंफकारते साँप की तरह युद्धभूमि में फुंफकारता रहा, फुंफकारता रहा ; और अंत में शांत होकर व्यर्थ हो गया, अपनी मौत मर गया । सोचो,अगर एक भी पांडव सैनिक ने आदेश न माना होता तो क्या होता !!
चौथी घटना
जब दुर्योधन ने षड्यंत्र करके पांडवों को लाक्षागृह में रखकर उसमें आग लगवा दी तो नीतिनिपुण विदुर ने पांडवों को एक सांकेतिक संदेश भेजा | कहा कि जब जंगल में आग लगी हो तो बिल में छिपे चूहों का वह आग कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती | पांडव इस संकेत को समझ गए ! और आप जानते हैं कि सभी पांडव अपने मार्गदर्शक विदुर का आदेश मानते हुए सुरंगों में से सुरक्षित बाहर निकल गए । भीम ने भी अकड़कर यह नहीं कहा कि हम पहलवानों की तो बात ही कुछ और है ! हम पहलवानों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता |
मित्रो ! इसीलिए कहा जाता है कि भारत की हर वर्तमान और अतीत की सब समस्याओं का समाधान महाभारत में है | कहा यह भी जाता है कि जो महाभारत में नहीं है, वह भारत में नहीं है | औरअगर किसी को न तो कृष्ण नीति समझ में आती हो, न विदुर नीति तो वे चाणक्य नीति सुनें | चाणक्य कहते हैं -- "जब शत्रु अदृश्य हो और तुम्हें ललकार रहा हो तो घर में सुरक्षित रहना ही बुद्धिमानी है |"
5th April 2020
महाभारत की खिड़की से कोरोना संदेश
प्रसंग डॉ. अशोक बत्रा की आवाज में
प्रसिद्ध कवि, लेखक, भाषाविद एवम् वक्ता
#कहानियाँ #प्रसंग #डॉ.अशोकबत्रा #corona #महाभारत #हिंदी #ashokbatra #Story #hindi #कोरोना #mahabharat
- अपनों के संघर्ष को कैसे टाला विवेकानंद ने
- करुणावान स्वामी विवेकानंद
- निडर और अंधविश्वासी विरोधी विवेकानंद
- महाभारत से कोरोना संदेश
- महामारी से जूझते विवेकानंद
- मैनाबाई का गायन सुन क्या कहा विवेकानंद ने
- विलक्षण बालक विवेकानंद
- विवेकानंद : कालेज-जीवन की मस्ती
- विवेकानंद का पहला संन्यासी शिष्य
- विवेकानंद खेतड़ी महाराज के संग
- विवेकानंद पर पिता का प्रभाव
- विवेकानन्द शिकागो भाषण के बाद
- वृन्दावन के दो अनुभव
- शिवभक्त स्वामी विवेकानंद
- सेवाधर्मी स्वामी विवेकानंद